अथर्ववेद संहिता
अथर्ववेद संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः
अथर्ववेद संहिता | |
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![]() वेदों की १९ वी शताब्दी की पाण्डुलिपि | |
ग्रंथ का परिमाण |
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श्लोक संख्या(लम्बाई) |
६००० ऋचाएँ |
रचना काल |
७००० - १५०० ईसा पूर्व |
अथर्ववेद का ज्ञान भगवान ने सबसे पहले महर्षि अंगिरा को दिया था, फिर महर्षि अंगिरा ने वह ज्ञान ब्रह्मा को दिया |
- यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः।
- निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्।। (अथर्व०-१/३२/३)।
'ये त्रिषप्ताः परियन्ति' अथर्ववेद का प्रथम मंत्र है |
परिचय
भूगोल, खगोल, वनस्पति विद्या, असंख्य जड़ी-बूटियाँ, आयुर्वेद, गंभीर से गंभीर रोगों का निदान और उनकी चिकित्सा, अर्थशास्त्र के मौलिक सिद्धान्त, राजनीति के गुह्य तत्त्व, राष्ट्रभूमि तथा राष्ट्रभाषा की महिमा, शल्यचिकित्सा, कृमियों से उत्पन्न होने वाले रोगों का विवेचन, मृत्यु को दूर करने के उपाय, मोक्ष, प्रजनन-विज्ञान अदि सैकड़ों लोकोपकारक विषयों का निरूपण अथर्ववेद में है। आयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व अत्यन्त सराहनीय है। अथर्ववेद में शान्ति-पुष्टि तथा अभिचारिक दोनों तरह के अनुष्ठन वर्णित हैं।
चरणव्यूह ग्रंथ के अनुसार अथर्वसंहिता की नौ शाखाएँ हैं-
- १. पैपल, २. दान्त, ३. प्रदान्त, ४. स्नात, ५. सौल, ६. ब्रह्मदाबल, ७. शौनक, ८. देवदर्शत और ९. चरणविद्या
वर्तमान में केवल दो शाखा की जानकारी मिलता है- १.जिसका पहला मन्त्र- शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु..... इत्यादि है वह पिप्पलाद संहिताशाखा तथा २.ये त्रिशप्ता परियन्ति विश्वारुपाणि विभ्रत....इत्यादि पहला मन्त्रवाला शौनक संहिता शाखा |जिसमें सेशौनक संहिता ही उपलब्ध हो पाती है। वैदिकविद्वानों के अनुसार ७५९ सूक्त ही प्राप्त होते हैं। सामान्यतः अथर्ववेद में ६००० मन्त्र होने का मिलता है परन्तु किसी-किसी में ५९८७ या ५९७७ मन्त्र ही मिलते हैं।
- अथर्ववेद के विषय में कुछ मुख्य तथ्य निम्नलिखित है-
- अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई ।
- वैदिक धर्म की दृष्टि से ॠग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद चारों का बड़ा ही महत्व है।
- अथर्ववेद से आयुर्वेद में विश्वास किया जाने लगा था। अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन अथर्ववेद में है।
- अथर्ववेद गृहस्थाश्रम के अंदर पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का उत्तम विवेचन करता है।
- अथर्ववेद में ब्रह्म की उपासना संबन्धी बहुत से मन्त्र हैं।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
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- वेद-विद्या_डॉट_कॉम
- अथर्ववेद का परिचय (विश्व संवाद केन्द्र)
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