हिन्दू लम्बाई गणना
पृथ्वी की लम्बाई हेतु सर्वाधिक प्रयोगित इकाई है योजन। धार्मिक विद्वान भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने अपने पौराणिक अनुवादों में सभी स्थानों पर योजन की लम्बाई को 8 मील (13 कि॰मी॰) बताया है।[1]। अधिकांश भारतीय विद्वान इसका माप 13 कि॰मी॰ से 16 कि॰मी॰ (8-10 मील) के लगभग बताते हैं। भारतीय शास्त्र कैसे सबसे उत्तम शास्त्र है।
माउण्ट एवेरेस्ट से बहुत ऊंचा है मेरु, जो अफ्रीका में है बशर्ते भूकेन्द्र से दूरी को पैमाना माने, न कि काल्पनिक समुद्रतल से (प्रमाण नीचे है)। भूव्यास हर जगह एक समान नहीं है, अतः समुद्रतल एक जैसा नहीं है । पुराणकारों का गणित अंग्रेजों से बेहतर था । ग्रीक लोगों ने ईसा से तीन सौ वर्ष पहले जाना कि पृथ्वी गोल है, जबकि "भूगोल" शब्द उससे बहुत पुराना है और प्राचीन ग्रन्थों में है । ये बात तो दुनिया ने भी माना है की भारतीय शास्त्र और ग्रन्थ दुनिया के सबसे पुराने ग्रन्थ हैं। एक उदाहरण प्रस्तुत है :- महाभारत में वेद व्यास जी ने लिखा है कि जब जरासन्ध ने मथुरा पर अपनी (तन्त्र द्वारा सिद्ध) गदा फेंकी तो वह मथुरा के बगल में मगध की राजधानी गिरिव्रज से 99 योजन (1योजन 8 मील तथा 1 मील 1. 6 किलोमीटर का होता है) दूर जाकर गिरी । परम्परागत पञ्चाङ्गकारों द्वारा सर्वमान्य और वराहमिहिर द्वारा सर्वोत्तम माने गए सूर्यसिद्धान्त के अनुसार भूव्यास 1600 योजन का है । गूगल अर्थ द्वारा गिरिव्रज और मथुरा के अक्षांशों का औसत निकालकर फल का कोज्या (कोसाइन) ज्ञात करें और उसे विषुवतीय अर्धव्यास से गुणित करें, इष्टस्थानीय भू-व्यासार्ध प्राप्त होगा ।
इसे मथुरा और गिरिव्रज के रेखांशों (Longitudes) के अन्तर से गुणित करें, फल 98.54 योजन मिलेगा, जो पूर्णांक में 99 योजन है ।
इसका अर्थ यह है कि व्यास जी ने पृथ्वी को गोल मानकर उपरोक्त गणित किया था । गौतम बुद्ध के काल में मगध की राजधानी राजगीर थी, गिरिव्रज तो महाभारत के मूल कथानक के काल की प्रागैतिहासिक राजधानी थी। ऐतिहासिक युग में योजन का मान बढ़ गया था, विभिन्न ऐतिहासिक ग्रन्थों में भूपरिधि सूर्यसिद्धान्तीय मान 5026.5 योजन के स्थान पर केवल 3200 योजन बतायी गयी । अतः स्पष्ट है कि वेद व्यास जी का गणित पूर्णतया शुद्ध था और अतिप्राचीन था । अब बतलाएं, क्या पृथ्वी के गोल होने और पृथ्वी के व्यास की खोज ग्रीक लोगों ने ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में की ? माउण्ट एवरेस्ट का अक्षांश है 27:59 । विषुवतीय एवं ध्रुवीय भूव्यासार्धों में अन्तर है 21772 मीटर , अतः माउण्ट एवरेस्ट के अक्षांश पर भूव्यासार्ध का मान विषुवत पर स्थित मेरु पर्वत के पास के भूव्यासार्ध से 6769 मीटर कम है, जबकि माउण्ट एवरेस्ट की समुद्रतलीय ऊँचाई मेरु की समुद्रतलीय ऊँचाई से 3649 मीटर अधिक है । फलस्वरूप भूकेन्द्र से मेरु-शिखर की ऊँचाई भूकेन्द्र से एवरेस्ट-शिखर की ऊँचाई की तुलना में 3120 मीटर अधिक है , दोनों में कोई तुलना ही नहीं है !
पृथ्वी के महाद्वीपीय भार का विषुवतीय केन्द्र पर्वतराज महामेरु ही है जो पृथ्वी के घूर्णन पर जायरोस्कोपिक नियन्त्रण रखता है और सम्पात-पुरस्सरण (precession of equinoxes) का भी केन्द्र है (न्यूटन ने प्रिन्सिपिया में विषुवतीय अफ्रीका के पर्वतीय उभार को पृथ्वी के घूर्णन का जायरोस्कोपिक नियन्त्रक बताया था) । पुराणकारों का गणित अंग्रेजों से बेहतर था न ! फिर भी उन्हें रामायण, महाभारत और पुराणों में ज्ञान की कोई बात नहीं दिखती, जबकि भारतीय संस्कृति इन्हीं ग्रन्थों पर आश्रित रही है ; वेद कितने लोग पढ़कर अर्थ लगा सकते हैं ?
क्षेत्रफ़ल की इकाइयां
बीघा
एक बीघा बराबर है:
- 2500 वर्ग मीटर (राजस्थान) में
- 1333.33 वर्ग मीटर (बंगाल) में
- 14,400 वर्ग फ़ीट (1337.8 m²) या 5 कथा (आसाम) में, एक कथा = 2,880 वर्ग फ़ीट (267.56 m²).
- एक कथा = 720 वर्ग फ़ीट
- नेपाल में
- 1 बीघा = 20 कठ्ठा (लगभग 6882.00 m²)
- 1 कठ्ठा = 20 धुर (लगभग 338.60 m²)
- 1 बीघा= 13.53 रोपनी
- 1 रोपनी = 16 आना (लगभग 508.74 m²)
- 1 आना= 4 पैसा (लगभग 31.80 m²)
- 1 पैसा= 4 दाम (7.95 m²)
- १ हेक्टर =१०००० वर्ग मिटर
- =१९ रोपनी १० आना
- =१बिगा ९ कट्ठा १० धुर
- १ एकड =७.९५ रोपनी {१ रोपनी =१६ आना }
इन्हें भी देखें
- हिन्दू मापन प्रणाली
- हिन्दू काल गणना
- भारतीय गणित
- हिन्दू महत्ता के क्रम (Hindu Orders of Magnitude)
सन्दर्भ्
- Srimad Bhagavatam 10.57.18 (translation) "one yojana measures about eight miles"
- Source:
“ आयत दशा च द्वे च योजनानि महापुरी ॥ श्रीमती त्रीणि विस्तीर्ण सु विभाकता महापथा॥ 1-5-7 „ - (A. R. 5. 104.)