जय जिनेन्द्र
जय जिनेन्द्र! एक प्रख्यात अभिवादन है। यह मुख्य रूप से जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ होता है "जिनेन्द्र भगवान (तीर्थंकर) को नमस्कार"।[1] यह दो संस्कृत अक्षरों के मेल से बना है: जय और जिनेन्द्र।
- जय शब्द जिनेन्द्र भगवान के गुणों की प्रशंसा के लिए उपयोग किया जाता है।
- जिनेन्द्र उन आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है जिन्होंने अपने मन, वचन और काया को जीत लिया और केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया हो।[1][2][3]
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दोहा
- चार मिले चौंसठ खिले,मिले बीस कर जोड़।
- सज्जन से सज्जन मिले, हर्षित चार करोड़।।
अर्थात्-:जब भी हम किसी समाजबंधु से मिलते हैं तो दूर से ही हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और दोनों हाथ जुड़ जाते हैं हमारे मुख से जय जिनेन्द्र निकल ही जाता है।
सन्दर्भ
- Rankin 2013, पृ॰ 37.
- Sangave 2001, पृ॰ 16.
- Sangave 2001, पृ॰ 164.
स्रोत ग्रन्थ
- Rankin, Aidan (2013), "Chapter 1. Jains Jainism and Jainness", Living Jainism: An Ethical Science, John Hunt Publishing, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1780999111
- Sangave, Vilas Adinath (2001), Aspects of Jaina religion (3rd संस्करण), Bharatiya Jnanpith, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-263-0626-2
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