महावीर जयन्ती
महावीर जयंती (महावीर स्वामी जन्म कल्याणक) चैत्र शुक्ल १३ को मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के उपलक्ष में मनाया जाता है। यह जैनों का सबसे प्रमुख पर्व है।
महावीर जन्म कल्याणक | |
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चौबीसवें जैन तीर्थंकर, भगवान महावीर का जन्म कल्याणक | |
![]() तीर्थंकर महावीर की प्रतिमा, मदुराई, तमिल नाडु, भारत | |
विवरण | |
अन्य नाम | महावीर स्वामी जन्म कल्याणक, वर्धमान जयन्ती |
तिथि | |
वीर निर्वाण संवत | चैत्र सुद १३ |
ग्रेगोरियन | 29 मार्च 2018 |
जन्म
भगवान महावीर स्वामी का जन्म ईसा से ५९९ वर्ष पूर्व कुंडग्राम (बिहार), भारत मे हुआ था। जन्म से पूर्व तीर्थंकर महावीर की माता त्रिशला ने १६ शुभ स्वप्न देखे थे जिनका फल राजा सिद्धार्थ ने इस प्रकार बताया था:-[1]

स्वप्न | राजा सिद्धार्थ द्वारा बतलाया गया फल। |
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१. स्वप्न में चार दाँतों वाला गज | बालक धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करेगा। |
२. वृषभ, जिसका रंग अत्यन्त सफ़ेद था | इसका फल है की बालक धर्म गुरु होगा और सत्य धर्म का प्रचारक होगा। |
३. सिंह | बालक अतुल पराक्रमी होगा। |
४. सिंघासन पर स्थित लक्ष्मी जिसका दो हाथी जल से अभिषेक कर रहे है। | बालक का जन्म के बाद देवों द्वारा सुमेरु पर्वत पर लेजाकर अभिषेक किया जाएगा। |
५. दो सुगंधित पुष्प मालाएँ | इस स्वप्न का फल है कि बालक यशस्वी होगा। |
६. पूर्ण चन्द्रमा | सब जीवों को आनंद प्रदान करेगा। |
७. सूर्य | अंधकार का नाश करेगा। |
८. दो स्वर्ण कलश | निधियों का स्वामी होगा। |
९. मछलियों का युगल | सुखी होगा- अनन्त सुख प्राप्त करेगा। |
१०. सरोवर | अनेक लक्षणों से सुशोभित होगा। |
११. समुद्र | केवल ज्ञान प्राप्त करेगा। |
१२. स्वप्न में एक स्वर्ण और मणि जडित सिंघासन | बालक जगत गुरु बनेगा अर्थात जगत के सर्वोच पद को प्राप्त करेगा।। |
१३. देव विमान | स्वर्ग से अवतीर्ण होगा। |
१४. नागेन्द्र का भवन | बालक अवधिज्ञानी होगा। |
१५.चमकती हुई रत्नराशि | बालक रत्नत्रय - सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र धारण करेगा। |
१६. निर्धूम अग्नि | कर्म रूपी इन्धन को जलाने वाला होगा। |
जैन ग्रन्थों के अनुसार जन्म के बाद देवों के मुखिया, इन्द्र ने सुमेरु पर्वंत पर ले जाकर बालक का क्षीर सागर के जल से अभिषेक किया था। इसे ही जन्म कल्याणक कहते है। हर तीर्थंकर के जीवन में पंचकल्याणक मनाए जाते है।
दस अतिशय
जैन ग्रंथों के अनुसार तीर्थंकर भगवन के जन्म से ही दस अतिशय होते है।[2] यह हैै:-
- पसीना न आना
- निर्मल देह
- दूध की तरह सफ़ेद रक्त
- अद्भुत रूपवान शरीर
- सुगंध युक्त शारीर
- उत्तम संस्थान (शारीरिक संरचना)
- उत्तम सहनन
- सर्व 1008 सुलक्षण युक्त शरीर
- अतुल बल
- प्रियहित वाणी
यह अतिशय उनके द्वारा पूर्व जन्म में किये गए तपश्चर्ण के फल स्वरुप प्रकट होते है।[3]
उत्सव
इस महोत्सव पर जैन मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है। भारत में कई जगहों पर जैन समुदाय द्वारा अहिंसा रैली निकाली जाती है। इस अवसर पर गरीब एवं जरुरतमंदों को दान दिया जाता है।[4] कई राज्य सरकारों द्वारा मांस एवं मदिरा की दुकाने बंद रखने के निर्देश दिए जाते हैं।[5]
सन्दर्भ
सन्दर्भ सूची
- प्रमाणसागर (2008), जैन तत्त्वविद्या, भारतीय ज्ञानपीठ, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-263-1480-5, Wikidata Q41794338
- जैन, साहित्याचार्य डॉ पन्नालाल (2015), आचार्य गुणभद्र की उत्तरपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-263-1738-7