दुर्गा

दुर्गा हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं जिन्हें केवल देवी और शक्ति भी कहते हैं। [1][2] शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं जिनकी तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली तथा कल्याणकारी हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं।[3] ॐ श्री दुर्गाय नम: देवी दुर्गा का निरूपण सिंह पर सवार एक देवी के रूप में की जाती है। दुर्गा देवी आठ भुजाओं से युक्त हैं जिन सभी में कोई न कोई शस्त्रास्त्र होते है। उन्होने महिषासुर नामक असुर का वध किया। महिषासुर (= महिष + असुर = भैंसा जैसा असुर) करतीं हैं। हिन्दू ग्रन्थों में वे शिव की पत्नी दुर्गा के रूप में वर्णित हैं। जिन ज्योतिर्लिंगों मैं देवी दुर्गा की स्थापना रहती है उनको सिद्धपीठ कहते है। वहाँ किये गए सभी संकल्प पूर्ण होते है। माता का दुर्गा देवी नाम दुर्गम नाम के महान दैत्य का वध करने के कारण पड़ा। माता ने शताक्षी स्वरूप धारण किया और उसके बाद शाकंभरी देवी के नाम से विख्यात हुई शाकंभरी देवी ने ही दुर्गमासुर का वध किया। जिसके कारण वे समस्त ब्रह्मांड में दुर्गा देवी के नाम से भी विख्यात हो गई। माता के देश में अनेकों मंदिर हैं कहीं पर महिषासुरमर्दिनि शक्तिपीठ तो कहीं पर कामाख्या देवी। यही देवी कोलकाता में महाकाली के नाम से विख्यात और सिद्धपीठ शाकंभरी देवी के रूप में ये ही पूजी जाती हैं।

दुर्गा
शक्ति / विजय

माता दुर्गा की प्रतिमा।
देवनागरी दुर्गा
संबंध शक्ति अवतार
मंत्र ॐ दुर्गा देव्यैः नमः
ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे॥ ॐ ह्री दुं दुर्गाय् नमः
अस्त्र त्रिशूल, चक्र,
गदा, धनुष,
शंख, तलवार,
कमल, तीर, अभयहस्त
जीवनसाथी शिव
सवारी बाघ सिंह
दुर्गा पूजा का पांडाल, 2011

हिन्दुओं के शक्ति साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है (शाक्त साम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मानता है)। वेदों में तो दुर्गा का व्यापाक उल्लेख है, किन्तु उपनिषद में देवी "उमा हैमवती" (उमा, हिमालय की पुत्री) का वर्णन है। पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक रूप हैं, शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। एकांकी (केंद्रित) होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवश अनेक हो जाती है। उस आदि शक्ति देवी ने ही सावित्री(ब्रह्मा जी की पहली पत्नी), लक्ष्मी, और पार्वती(सती) के रूप में जन्म लिया और उसने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से विवाह किया था। तीन रूप होकर भी दुर्गा (आदि शक्ति) एक ही है।

देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं (सावित्री, लक्ष्मी एव पार्वती से अलग)। मुख्य रूप उनका "गौरी" है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप। उनका सबसे भयानक रूप "काली" है, अर्थात काला रूप। विभिन्न रूपों में दुर्गा भारत और नेपाल के कई मन्दिरों और तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं। कुछ दुर्गा मन्दिरों में पशुबलि भी चढ़ती है। भगवती दुर्गा की सवारी शेर है।

मार्कण्डेय पुराण में ब्रहदेव ने मनुष्‍य जाति की रक्षा के लिए एक परम गुप्‍त, परम उपयोगी और मनुष्‍य का कल्‍याणकारी देवी कवच एवं व देवी सुक्‍त बताया है और कहा है कि जो मनुष्‍य इन उपायों को करेगा, वह इस संसार में सुख भोग कर अन्‍त समय में बैकुण्‍ठ को जाएगा। ब्रहदेव ने कहा कि जो मनुष्‍य दुर्गा सप्तशती का पाठ करेगा उसे सुख मिलेगा। भगवत पुराण के अनुसार माँ जगदम्‍बा का अवतरण श्रेष्‍ठ पुरूषो की रक्षा के लिए हुआ है। जबकि श्रीं मद देवीभागवत के अनुसार वेदों और पुराणों कि रक्षा के और दुष्‍टों के दलन के लिए माँ जगदंबा का अवतरण हुआ है। इसी तरह से ऋगवेद के अनुसार माँ दुर्गा ही आदि-शक्ति है, उन्‍ही से सारे विश्‍व का संचालन होता है और उनके अलावा और कोई अविनाशी नही है।

इसीलिए नवरात्रि के दौरान नव दुर्गा के नौ रूपों का ध्‍यान, उपासना व आराधना की जाती है तथा नवरात्रि के प्रत्‍येक दिन मां दुर्गा के एक-एक शक्ति रूप का पूजन किया जाता है।

अन्य स्वरूप

दुर्गा सप्तशती के अनुसार इनके अन्य स्वरूप भी बतलायें गये हैं।

  • 1. सती :* अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली
  • 2. साध्वी :* आशावादी
  • 3. भवप्रीता :* भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली
  • 4. भवानी :* ब्रह्मांड की निवास
  • 5. भवमोचनी :* संसार बंधनों से मुक्त करने वाली
  • 6. आर्या :* देवी
  • 7. दुर्गा :* अपराजेय
  • 8. जया :* विजयी
  • 9. आद्या :* शुरूआत की वास्तविकता
  • 10. त्रिनेत्र :* तीन आँखों वाली
  • 11. शूलधारिणी :* शूल धारण करने वाली
  • 12. पिनाकधारिणी :* शिव का त्रिशूल धारण करने वाली
  • 13. चित्रा :* सुरम्य, सुंदर
  • 14. चण्डघण्टा :* प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली
  • 15. महातपा :* भारी तपस्या करने वाली
  • 16. मन :* मनन- शक्ति
  • 17. बुद्धि :* सर्वज्ञाता
  • 18. अहंकारा :* अभिमान करने वाली
  • 19. चित्तरूपा :* वह जो सोच की अवस्था में है
  • 20. चिता :* मृत्युशय्या
  • 21. चिति :* चेतना
  • 22. सर्वमन्त्रमयी :* सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली
  • 23. सत्ता :* सत्-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है
  • 24. सत्यानन्दस्वरूपिणी :* अनन्त आनंद का रूप
  • 25. अनन्ता :* जिनके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं
  • 26. भाविनी :* सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत
  • 27. भाव्या :* भावना एवं ध्यान करने योग्य
  • 28. भव्या :* कल्याणरूपा, भव्यता के साथ
  • 29. अभव्या :* जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
  • 30. सदागति :* हमेशा गति में, मोक्ष दान
  • 31. शाम्भवी :* शिवप्रिया, शंभू की पत्नी
  • 32. देवमाता :* देवगण की माता
  • 33. चिन्ता :* चिन्ता
  • 34. रत्नप्रिया :* गहने से प्यार
  • 35. सर्वविद्या :* ज्ञान का निवास
  • 36. दक्षकन्या :* दक्ष की बेटी
  • 37. दक्षयज्ञविनाशिनी :* दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली
  • 38. अपर्णा :* तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली
  • 39. अनेकवर्णा :* अनेक रंगों वाली
  • 40. पाटला :* लाल रंग वाली
  • 41. पाटलावती :* गुलाब के फूल या लाल परिधान या फूल धारण करने वाली
  • 42. पट्टाम्बरपरीधाना :* रेशमी वस्त्र पहनने वाली
  • 43. कलामंजीरारंजिनी :* पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली
  • 44. अमेय :* जिसकी कोई सीमा नहीं
  • 45. विक्रमा :* असीम पराक्रमी
  • 46. क्रूरा :* दैत्यों के प्रति कठोर
  • 47. सुन्दरी :* सुंदर रूप वाली
  • 48. सुरसुन्दरी :* अत्यंत सुंदर
  • 49. वनदुर्गा :* जंगलों की देवी, बनशंकरी अथवा शाकम्भरी
  • 50. मातंगी :* मतंगा की देवी
  • 51. मातंगमुनिपूजिता :* बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय
  • 52. ब्राह्मी :* भगवान ब्रह्मा की शक्ति
  • 53. माहेश्वरी :* प्रभु शिव की शक्ति
  • 54. इंद्री :* इन्द्र की शक्ति
  • 55. कौमारी :* किशोरी
  • 56. वैष्णवी :* अजेय
  • 57. चामुण्डा :* चंड और मुंड का नाश करने वाली
  • 58. वाराही :* वराह पर सवार होने वाली
  • 59. लक्ष्मी :* सौभाग्य की देवी
  • 60. पुरुषाकृति :* वह जो पुरुष धारण कर ले
  • 61. विमिलौत्त्कार्शिनी :* आनन्द प्रदान करने वाली
  • 62. ज्ञाना :* ज्ञान से भरी हुई
  • 63. क्रिया :* हर कार्य में होने वाली
  • 64. नित्या :* अनन्त
  • 65. बुद्धिदा :* ज्ञान देने वाली
  • 66. बहुला :* विभिन्न रूपों वाली
  • 67. बहुलप्रेमा :* सर्व प्रिय
  • 68. सर्ववाहनवाहना :* सभी वाहन पर विराजमान होने वाली
  • 69. निशुम्भशुम्भहननी :* शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
  • 70. महिषासुरमर्दिनि :* महिषासुर का वध करने वाली
  • 71. मधुकैटभहंत्री :* मधु व कैटभ का नाश करने वाली
  • 72. चण्डमुण्ड विनाशिनि :* चंड और मुंड का नाश करने वाली
  • 73. सर्वासुरविनाशा :* सभी राक्षसों का नाश करने वाली
  • 74. सर्वदानवघातिनी :* संहार के लिए शक्ति रखने वाली
  • 75. सर्वशास्त्रमयी :* सभी सिद्धांतों में निपुण
  • 76. सत्या :* सच्चाई
  • 77. सर्वास्त्रधारिणी :* सभी हथियारों धारण करने वाली
  • 78. अनेकशस्त्रहस्ता :* हाथों में कई हथियार धारण करने वाली
  • 79. अनेकास्त्रधारिणी :* अनेक हथियारों को धारण करने वाली
  • 80. कुमारी :* सुंदर किशोरी
  • 81. एककन्या :* कन्या
  • 82. कैशोरी :* जवान लड़की
  • 83. युवती :* नारी
  • 84. यति :* तपस्वी
  • 85. अप्रौढा :* जो कभी पुराना ना हो
  • 86. प्रौढा :* जो पुराना है
  • 87. वृद्धमाता :* शिथिल
  • 88. बलप्रदा :* शक्ति देने वाली
  • 89. महोदरी :* ब्रह्मांड को संभालने वाली
  • 90. मुक्तकेशी :* खुले बाल वाली
  • 91. घोररूपा :* एक भयंकर दृष्टिकोण वाली
  • 92. महाबला :* अपार शक्ति वाली
  • 93. अग्निज्वाला :* मार्मिक आग की तरह
  • 94. रौद्रमुखी :* विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा
  • 95. कालरात्रि :* काले रंग वाली
  • 96. तपस्विनी :* तपस्या में लगे हुए
  • 97. नारायणी :* भगवान नारायण की विनाशकारी रूप
  • 98. भद्रकाली :* काली का भयंकर रूप
  • 99. विष्णुमाया :* भगवान विष्णु का जादू
  • 100. जलोदरी :* ब्रह्मांड में निवास करने वाली
  • 101. शिवदूती :* भगवान शिव की राजदूत
  • 102. करली :* हिंसक
  • 103. अनन्ता :* विनाश रहित
  • 104. परमेश्वरी :* प्रथम देवी
  • 105. कात्यायनी :* ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय
  • 106. सावित्री :* सूर्य की बेटी
  • 107. प्रत्यक्षा :* वास्तविक
  • 108. ब्रह्मवादिनी :* वर्तमान में हर जगह वास करने वाली

(सती)

सती दुर्गा जी एक नाम है। दक्ष ने अपने यज्ञ में सभी देवताओं को आमंत्रित किया , लेकिन शिव और सती को आमंत्रण नहीं दिया। इससे क्रुद्ध होकर, अपमान का प्रतिकार करने के लिए इन्होंने उग्रचंडी के रूप में अपने पिता के यज्ञ का विध्वंस किया था। इनके हाथों की संख्या १८ मानी जाती है। आश्विन महीने में कृष्णपक्ष की नवमी दिन शाक्तमतावलंबी विशेष रूप से उग्रचंडी की पूजा करते हैं।माँ गिरिजा भवानी

दीर्घा

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

,दुर्गा के विभिन्न रूप दुर्गा शप्तशती , दुर्गा चलिसा

  1. David R. Kinsley 1989, pp. 3-4.
  2. "9 days, 9 avatars: Be ferocious like Goddess Kaalratri".
  3. Paul Reid-Bowen 2012, pp. 212-213.
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