महासू देवता मंदिर, हणोल
हणोल का महासू देवता मंदिर अथवा महासू महादेव मंदिर का निर्माण हूण राजवंश के नेता मिहिरकुल हूण ने करवाया था।[1] हणोल गांव ,जौनसार बावर, उत्तराखंड में स्थित यह मंदिर हूण स्थापत्य शैली का शानदार नमूना हैं व कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है। कहा जाता हैं कि इसे हूण भट ने बनवाया था। यहाँ यह उल्लेखनीय हैं कि भट का अर्थ योद्धा होता हैं।
महासू देवता मंदिर | |
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हूण कालिन शिव मंदिर | |
![]() 'हूण भट अर्थात हूण योध्दा' द्वारा निर्मित | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
डिस्ट्रिक्ट | देहरादून |
देवता | शिव |
अवस्थिति जानकारी | |
राज्य | उत्तराखंड |
देश | भारत |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | हूण स्थापत्य कला |
निर्माता | मिहिरकुल हूण |
हणोल
हणोल अथवा हनोल गांव का नाम हूण भट यानी हूण योद्धा के नाम पर है। यह उल्लेखनीय हैं कि भट का अर्थ योद्धा होता हैं अर्थात हूण योध्दा। ये गांव जौनसार बावर, उत्तराखंड मे पडता है तथा देहरादून से लगभग 190 किमी. और मसूरी से 156 किमी दूर है।
इतिहास
मिहिकुल हूण एक कट्टर शैव था। उसने अपने शासन काल में हजारों शिव मंदिर बनवाये[2] मंदसोर अभिलेख के अनुसार यशोधर्मन से युद्ध होने से पूर्व उसने भगवान स्थाणु (शिव) के अलावा किसी अन्य के सामने अपना सर नहीं झुकाया था।[3] मिहिरकुल ने ग्वालियर अभिलेख में भी खुद को शिव भक्त कहा हैं। मिहिरकुल के सिक्कों पर जयतु वृष लिखा हैं जिसका अर्थ हैं- जय नंदी। वृष शिव कि सवारी हैं जिसका मिथकीय नाम नंदी हैं।[4] इनके सिक्के हूणो द्वारा शासित पश्चिमी भारत में शताब्दियों, विशेषकर 7वीं से लेकर 10वीं शताब्दी, तक भारी प्रचलन में रहे हैं।[5] बूंदी इलाके में रामेश्वर महादेव, भीमलत और झर महादेव हूणों के बनवाये प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं। बिजोलिया, चित्तोरगढ़ के समीप स्थित मैनाल कभी हूण राजा अन्गत्सी की राजधानी थी, जहा हूणों ने तिलस्वा महादेव का मंदिर बनवाया था। यह मंदिर आज भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। कर्नल टाड़ के अनुसार बडोली, कोटा में स्थित सुप्रसिद्ध शिव मंदिर पंवार/परमार वंश के हूणराज ने बनवाया था।[6] कास्मोस इन्दिकप्लेस्तेस नामक एक यूनानी ने मिहिरकुल के समय भारत की यात्रा की थी, उसने “क्रिस्टचिँन टोपोग्राफी” नामक अपने ग्रन्थ में लिखा हैं की हूण भारत के उत्तरी पहाड़ी इलाको में रहते हैं। उनका राजा मिहिरकुल एक विशाल घुड़सवार सेना और कम से कम दो हज़ार हाथियों के साथ चलता हैं,वह भारत का स्वामी हैं। मिहिरकुल के लगभग सौ वर्ष बाद चीनी बौद्ध तीर्थ यात्री हेन् सांग 629 इसवी में भारत आया। वह अपने ग्रन्थ “सी-यू-की” में लिखता हैं की सैंकडो वर्ष पहले मिहिरकुल नाम का राजा हुआ करता था जो स्यालकोट से भारत पर राज करता था । वह कहता हैं कि मिहिरकुल नैसर्गिक रूप से प्रतिभाशाली और बहादुर था।[7]