थान कवि(रीतिग्रंथकार कवि)

थान कवि पूरा नाम थानराय था। डौंड़ियाखेर (रायबरेली) के निवासी और सुकवि चंदन बंदीजन के भानजे थे। निहालराय पिता, महासिंह पितामह और लालराय इनके प्रपितामह थे। चँड्रा (बैसवारा) के स्थानीय रईस दलेलसिंह के नाम पर इन्होंने सं 1840 वि में "दलेलप्रकाश" नामक रीतिग्रंथ की रचना की जिसमें रसों, भावों, गणों अलंकारों और काव्य गुणदोषों का विषयानुक्रम रहित निरूपण हुआ है। यत्र-तत्र इसमें रागरागिनियों के लक्षण भी कहे गए हैं और अंत में चित्रकाव्य को भी स्थान दिया गया है। वर्ण्य विषय के वैविध्य और उनके क्रमानुसारी वर्णनों के अभाव को देखकर यही कहना पड़ता है कि कवि को जितना इष्ट अपने बहुविषयव्यापी ज्ञान का प्रदर्शन करना है उतना उनका शास्त्रीय वर्णन-विवेचन नहीं। इतना होते हुए भी जो भी विषय इन्होंने लिया है उन पर उत्तमोत्तम रचनाएँ की हैं। इसलिये पं रामचंद्र शुक्ल का कहना था कि "यदि अपने ग्रंथ को इन्होंने भानमती का पिटारा न बनाया होता और एक ढंग पर चले होते तो इनकी बड़े कवियों की सी ख्याति होती।" इनकी अनुप्रासयुक्त ब्रजभाषा पर्याप्त ललित, मधुर और प्रवाहपूर्ण है।

रीतिकाल के रीतिग्रंथकार कवि हैं।

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