हर‌ियाली तीज

हर‌ियाली तीज हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी चादर से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं।पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं। [1] सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस मौके पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और खुशियां मनाती हैं।[2] [{हरियाली तीज पर कविता:-

  • ☘हरियाली तीज सत्यार्थ🌙*
हर‌ियाली तीज

श्रावण मास में खिल जाती है

    प्रकर्ति हरित रूप पुष्प हर पात।

स्वच्छ नभ् मंडल अलौकिक होता

    इंद्रधनुष सप्त रंगी मुस्काता स्व द्रष्टात।।

रच जाती स्वयं नवरंगों

     और इठलाती मद्य मोहनी चमन।

धरा चमकती पड़ सूर्य प्रभा

    चल रूकती ले मद गंघ पवन।।

यौवन नारित्त्व बन भाषित होता

                  हर नवयौवना नार।

नर में भी प्रस्फुटित होता

     प्राकृतिक कामनाएं ले उपहार।।

यही अभिव्यक्ति होती

             मैं और तू है एक दूजे पूर्ण।

मिलन का अभिसार गीत गाता

        चन्द्र रश्मि धरा बहाता परिपूर्ण।।

झरने नदी चर्मोउत्कृष् पे होते

        चंचलता तोड़ती नव मोड़ती तट।

समुन्द्र उन्हें आमन्त्रण देता

      आ मिल जा मुझमें खोल ह्रदय के पट।।

बिजली गिरती बादल फटते

      घोर गर्जन है ऋतु प्रसन्नता।

प्रलय संग नव सृजन होता

     अद्धभुत नाँद श्रवण अभिनवता।।

मोर नाचते काम पंखों संग

       कूह पीहू टर चिन जग ध्वनि।

धुल जाते प्रकर्ति माँ हाथों

       स्नान कर पग से ले कर कँगनी।।

नवयौवन प्रतीक हरित है

             उससे बढ़ता रंग महत्त्व।

इसी रचना को हाथ अंग रचाती

         नवयौवना बना प्रेम प्रतीक महत्त्व।।

जो अंदर है वही है बाहर

    प्रेम कामनाये महंदी रंग खिलती।

अंग प्रत्यंग महाभाव को करता

     प्रकट महंदी रच आनंद को मिलती।।

अर्थ मिल काम संग धर्म है

              यही तीन तीज है अर्थ।

मोक्ष प्रकर्ति विषय नही है

     जीवन जीवंत प्रेम हरित है अर्थ।।

यो हरियाली तीज है कहते

        यो मनाते इसे मध्य हर वर्ष।

यही जानना ज्ञान व्रत है

       जो जाने पाये जीवन प्रेम नवहर्ष।।
  • हरियाली तीज व्रतार्थ:-*

तीन झूट ताज्य् करें

              पति पत्नी छल कपट।

दूजे की निंदा नही

               और दूजे धन झपट।।

ईश्वर इस जगत में

                    बटा है तीन तत्व।

पुरुष स्त्री और बीज

      यही तीज अर्थ ज्ञान गत्व।।

ईश्वर तीन स्वरूप में

                    इच्छा क्रिया ज्ञान।

हरी ईश्वर याली संसार है

   यही हरियाली तीज अर्थ मान।।

तीन काल तीन गुण

                   तीन देव तीन देवी।

ईश्वर जीव माया तीन

      गुरु शिष्य विद्या तीन खेवी।।

जो इन तीन ज्ञान जानता

       और सदा करता इन्हें पालन।

मनवांछित वरदान मिले

  हरियाली तीज व्रत सिद्ध फल पालन।।

(स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी)

  • 🙏�जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः🙏�*
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पर्व की मुख़्य रस्म

इस उत्सव को हम मेंहदी रस्म भी कह सकते हैं क्योंकि इस दिन महिलाये अपने हाथों, कलाइयों और पैरों आदि पर विभिन्न कलात्मक रीति से मेंहदी रचाती हैं। इसलिए हम इसे मेहंदी पर्व भी कह सकते हैं।इस दिन सुहागिन महिलाएं मेहँदी रचाने के पश्चात् अपने कुल की बुजुर्ग महिलाओं से आशीर्वाद लेना भी एक परम्परा है।

उत्सव में सहभागिता

इस उत्सव में कुमारी कन्याओं से लेकर विवाहित युवा और वृद्ध महिलाएं सम्मिलित होती हैं। नव विवाहित युवतियां प्रथम सावन में मायके आकर इस हरियाली तीज में सम्मिलित होने की परम्परा है। हर‌ियाली तीज के द‌िन सुहागन स्‍त्र‌ियां हरे रंग का श्रृंगार करती हैं। इसके पीछे धार्म‌िक कारण के साथ ही वैज्ञान‌िक कारण भी शाम‌िल है। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी जरूर लगाती है। इसकी शीतल तासीर प्रेम और उमंग को संतुलन प्रदान करने का भी काम करती है। ऐसा माना जाता है कि सावन में काम की भावना बढ़ जाती है। मेंहदी इस भावना को नियंत्रित करता है। हरियाली तीज का नियम है कि क्रोध को मन में नहीं आने दें। मेंहदी का औषधीय गुण इसमें महिलाओं की मदद करता है।इस व्रत में सास और बड़े नई दुल्हन को वस्‍त्र, हरी चूड़‌ियां, श्रृंगार सामग्री और म‌िठाइयां भेंट करती हैं। इनका उद्देश्य होता है दुल्हन का श्रृंगार और सुहाग हमेशा बना रहे और वंश की वृद्ध‌ि हो।

पौराणिक महत्व

कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भगवान् शिव से मिली थीं। [1]यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए १०७ बार जन्म लिया फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त न हो सके। १०८ वीं बार माता पार्वती ने जब जन्म लिया तब श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीय को भगवन शिव पति रूप में प्राप हो सके।[3] तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव -पार्वती की पूजा करती हैं उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है।[4]साथ ही देवी पार्वती के कहने पर श‌िव जी ने आशीर्वाद द‌िया क‌ि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी और श‌िव पार्वती की पूजा करेगी उनके व‌िवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी साथ ही योग्य वर की प्राप्त‌ि होगी। सुहागन स्‍त्र‌ियों को इस व्रत से सौभाग्य की प्राप्त‌ि होगी और लंबे समय तक पत‌ि के साथ वैवाह‌िक जीवन का सुख प्राप्त करेगी। इसल‌िए कुंवारी और सुहागन दोनों ही इस व्रत का रखती हैं।[5]

पर्व का मुख्य केंद्र

हरियाली तीज का उत्सव भारत के अनेक भागों में मनाया जाता है , परन्तु राजस्थान में विशेषकर जयपुर में इसका विशेष महत्त्व है।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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