विक्रम संवत
विक्रम संवत् एक प्राचीन हिन्दू कालगणना प्रणाली है जो भारतीय उपमहाद्वीप्प में प्रचलित रही है। यह नेपाल का आधिकारिक पञ्चांग है। भारत में यह अनेकों राज्यों में प्रचलित पारम्परिक पञ्चाङ्ग है। इसमें चान्द्र मास एवं सौर नाक्षत्र वर्ष (solar sidereal years) का उपयोग किया जाता है। इसका प्रणेता सम्राट विक्रमादित्य को माना जाता है। कुछ आरम्भिक शिलालेखों में ये वर्ष 'कृत' के नाम से आये हैं। ८वीं एवं ९वीं शती से विक्रम संवत का नाम विशिष्ट रूप से मिलता है। संस्कृत के ज्योतिष शास्त्रीय ग्रंथों में यह शक संवत से भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए यह सामान्यतः केवल 'संवत' नाम से प्रयोग किया गया है।
यह संवत 57 ई.पू. आरम्भ होती है (विक्रमी संवत = ईस्वी सन + 57) । इस संवत का आरम्भ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तरी भारत में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है (अधिमास, देखें)।
जिस दिन नव संवत का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है। उदाहरण के लिए, 18-मार्च-2018 को विक्रम संवत 2075 का प्रथम दिन था। 18 मार्च को रविवार होने से वर्ष का राजा सूर्य होगा।
उद्भव
'विक्रम संवत' के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि 'विक्रमादित्य' नामक किसी राजा ने ईशापूर्व 57 में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था। कुछ लोग ईसवी सन 78 और कुछ लोग ईसवी सन 544 में इसका प्रारम्भ मानते हैं।
फ़ारसी ग्रंथ 'कलितौ दिमनः' में पंचतंत्र का एक पद्य 'शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्श' का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः 'कृत संवत' को 'विक्रम संवत' का पूर्ववर्ती माना है। किन्तु 'कृत' शब्द के प्रयोग की व्याख्या सन्तोषजनक नहीं की जा सकी है। कुछ शिलालेखों में [[मावल-गण] का संवत उल्लिखित है, जैसे- नरवर्मा का मन्दसौर शिलालेख। 'कृत' एवं 'मालव' संवत एक ही कहे गए हैं, क्योंकि दोनों पूर्वी राजस्थान एवं पश्चिमी मालवा में प्रयोग में लाये गये हैं। कृत के 282 एवं 295 वर्ष तो मिलते हैं, किन्तु मालव संवत के इतने प्राचीन शिलालेख नहीं मिलते। यह भी सम्भव है कि कृत नाम पुराना है और जब मालवों ने उसे अपना लिया तो वह 'मालव-गणाम्नात' या 'मालव-गण-स्थिति' के नाम से पुकारा जाने लगा। किन्तु यह कहा जा सकता है कि यदि 'कृत' एवं 'मालव' दोनों बाद में आने वाले विक्रम संवत की ओर ही संकेत करते हैं, तो दोनों एक साथ ही लगभग एक सौ वर्षों तक प्रयोग में आते रहे, क्योंकि हमें 480 कृत वर्ष एवं 461 मालव वर्ष प्राप्त होते हैं।
महीनों के नाम
महीनों के नाम | पूर्णिमा के दिन नक्षत्र जिसमें चन्द्रमा होता है |
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चैत्र | चित्रा, स्वाति |
बैशाख | विशाखा, अनुराधा |
जेष्ठ | जेष्ठा, मूल |
आषाढ़ | पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा |
श्रावण | श्रवण, धनिष्ठा |
भाद्रपद | पूर्वाभाद्र, उत्तरभाद्र |
आश्विन | अश्विन, रेवती, भरणी |
कार्तिक | कृतिका बदी, रोहणी |
मार्गशीर्ष | मृगशिरा, उत्तरा |
पौष | पुनवर्सु, पुष्य |
माघ | मघा, अश्लेशा |
फाल्गुन | पूर्वाफाल्गुन, उत्तरफाल्गुन, हस्त |
प्रत्येक माह में दो पक्ष होते हैं, जिसे कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष कहते हैं।
इन्हें भी देखें
- अन्य संवत
- प्राचीन सप्तर्षि ६६७६ ईपू
- कलियुग संवत ३१०२ ईपू
- सप्तर्षि संवत ३०७६ ईपू
- वीर निर्वाण संवत
- शक संवत ७८