चण्डी चरित्र
चण्डी चरित्र[1] सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा रचित देवी चण्डिका की एक स्तुति है। गुरु गोबिन्द सिंह एक महान योद्धा एवं भक्त थे। वे देवी के शक्ति रूप के उपासक थे।
यह स्तुति दशम ग्रंथ के "उक्ति बिलास" नामक विभाग का एक हिस्सा है। गुरुबाणी में हिन्दू देवी-देवताओं का अन्य जगह भी वर्णन आता है[2]।
'चण्डी' के अतिरिक्त 'शिवा' शब्द की व्याख्या ईश्वर के रूप में भी की जाती है। "महाकोश" नामक किताब में ‘शिवा’ की व्याख्या ‘ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ’ (परब्रह्म की शक्ति) के रूप में की गई है[3]। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भी 'शिवा' 'शिव' (ईश्वर) की शक्ति है।
देवी के रूप का व्याख्यान गुरु गोबिंद सिंह जी यूं करते हैं :
पवित्री पुनीता पुराणी परेयं ॥
प्रभी पूरणी पारब्रहमी अजेयं ॥॥
अरूपं अनूपं अनामं अठामं ॥॥
अभीतं अजीतं महां धरम धामं ॥३२॥२५१॥
गीत
ਦੇਹ ਸਿਵਾ ਬਰੁ ਮੋਹਿ ਇਹੈ ਸੁਭ ਕਰਮਨ ਤੇ ਕਬਹੂੰ ਨ ਟਰੋਂ ॥
ਨ ਡਰੋਂ ਅਰਿ ਸੋ ਜਬ ਜਾਇ ਲਰੋਂ ਨਿਸਚੈ ਕਰਿ ਅਪੁਨੀ ਜੀਤ ਕਰੋਂ ॥
ਅਰੁ ਸਿਖ ਹੋਂ ਆਪਨੇ ਹੀ ਮਨ ਕੌ ਇਹ ਲਾਲਚ ਹਉ ਗੁਨ ਤਉ ਉਚਰੋਂ ॥
ਜਬ ਆਵ ਕੀ ਅਉਧ ਨਿਦਾਨ ਬਨੈ ਅਤਿ ਹੀ ਰਨ ਮੈ ਤਬ ਜੂਝ ਮਰੋਂ ॥੨੩੧॥
- देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं
- न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं,
- अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों,
- जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥२३१॥
- भाल निपट विशाल शशिमृग मीन खंजन लोचनी,
- भाल बदन विशाल कोमल सकल विध्न विमोचनी।
- सिंह वाहिनी धनुष धारिणी कनक सेवत सोहिनी,
- रूण्ड माल अरोल राजत् मुनिन के मन मोहिनी।
- एक रूप अनेक तेरो मैया गुणन की गिनती नहीं,
- कछु ज्ञान अतः ही सुजान भक्तन भाव से विनती करी।
- वर वेष अनूड़ा खड़ग खप्पर अभय अंकुश धारिणी,
- कर काज लाज जहाज जननी जनन के हित कारिणी।
- मंद हास प्रकाश चहूं दिस विंध्य वासिनी गाईये,
- क्रोध तज अभिमान परिहर दुष्ट बुद्धि नसाईये।
- उठत बैठत चलत सोवत बार बार मनाईये,
- चण्ड मुण्ड विनाशिनी जी के चरण हित चित्त लाईये।
- चंद्र फल और वृंद होते अधिक आनंद रूप हैं,
- सर्व सुख दाता विधाता दर्श पर्श अनूप हैं।
- तू योग भोग विलासिनी शिव पार्श्व हिम गिरी नंदिनी,
- दुरत तुरत निवारिणी जग तारिणी अद्य खंजिनी।
- आदि माया ललित काया प्रथम मधु कैटभ छ्ले,
- त्रिभुवन भार उतारवे को महा महिषासुर मले।
- इंद्र चंद्र कुबेर वरूणो सुरन के आनंद भये,
- भुवन चौदह मैया दश दिशन में सुनत ही सब दुख गये।
- धूम्रलोचन भस्म कीनो मैया क्रोध के ‘हुँ’कार सों,
- हनी है सेना मैया सकल ताकी सिंह के भभकार सों।
- चण्ड मुण्ड प्रचण्ड दोऊ मैया प्रवल से अति भ्रष्ट हैं,
- मुण्ड जिनके किए खण्डन असुर मण्डल दुष्ट हैं।
- रक्तबीज असुर अधर्मी आयो हैं दल जोड़ के,
- शोर कर मरवे को धायो कियो रण घनघोर से।
- जय जय भवानी युक्ति ठानी सर्व शक्ति बुलाईके,
- महा शुम्भ निशुम्भ योद्धा हन्यो खड़ग् बजाईके।
- परस्पर जब युद्ध माच्यो दिवस सों रजनी भई,
- दास कारण असुर मारे मैया पुष्प घन वर्षा भई।
- चित्त लाई चंडी चरित्र पढ़त और सुनत जो निसदिन सदा,
- पुत्र मित्र कलात्र सुख सों दुख न आवे डिग कदा।
- भुक्ति मुक्ति सुबुद्धि बहुधन धान्य सुख संपत्त लिए,
- शत्रु नाश प्रकाश दुनिया आनंद मंगल जन्म लहें
- भाल निपट विशाल शशिमृग मीन खंजन लोचनी,
- भाल बदन विशाल कोमल सकल विध्न विमोचनी।
- सिंह वाहिनी धनुष धारिणी कनक सेवत सोहिनी,
- रूण्ड माल अरोल राजत् मुनिन के मन मोहिनी।
- एक रूप अनेक तेरो मैया गुणन की गिनती नहीं,
- कछु ज्ञान अतः ही सुजान भक्तन भाव से विनती करी।
- वर वेष अनूड़ा खड़ग खप्पर अभय अंकुश धारिणी,
- कर काज लाज जहाज जननी जनन के हित कारिणी।
- मंद हास प्रकाश चहूं दिस विंध्य वासिनी गाईये,
- क्रोध तज अभिमान परिहर दुष्ट बुद्धि नसाईये।
- उठत बैठत चलत सोवत बार बार मनाईये,
- चण्ड मुण्ड विनाशिनी जी के चरण हित चित्त लाईये।
- चंद्र फल और वृंद होते अधिक आनंद रूप हैं,
- सर्व सुख दाता विधाता दर्श पर्श अनूप हैं।
- तू योग भोग विलासिनी शिव पार्श्व हिम गिरी नंदिनी,
- दुरत तुरत निवारिणी जग तारिणी अद्य खंजिनी।
- आदि माया ललित काया प्रथम मधु कैटभ छ्ले,
- त्रिभुवन भार उतारवे को महा महिषासुर मले।
- इंद्र चंद्र कुबेर वरूणो सुरन के आनंद भये,
- भुवन चौदह मैया दश दिशन में सुनत ही सब दुख गये।
- धूम्रलोचन भस्म कीनो मैया क्रोध के ‘हुँ’कार सों,
- हनी है सेना मैया सकल ताकी सिंह के भभकार सों।
- चण्ड मुण्ड प्रचण्ड दोऊ मैया प्रवल से अति भ्रष्ट हैं,
- मुण्ड जिनके किए खण्डन असुर मण्डल दुष्ट हैं।
- रक्तबीज असुर अधर्मी आयो हैं दल जोड़ के,
- शोर कर मरवे को धायो कियो रण घनघोर से।
- जय जय भवानी युक्ति ठानी सर्व शक्ति बुलाईके,
- महा शुम्भ निशुम्भ योद्धा हन्यो खड़ग् बजाईके।
- परस्पर जब युद्ध माच्यो दिवस सों रजनी भई,
- दास कारण असुर मारे मैया पुष्प घन वर्षा भई।
- चित्त लाई चंडी चरित्र पढ़त और सुनत जो निसदिन सदा,
- पुत्र मित्र कलात्र सुख सों दुख न आवे डिग कदा।
- भुक्ति मुक्ति सुबुद्धि बहुधन धान्य सुख संपत्त लिए,
- शत्रु नाश प्रकाश दुनिया आनंद मंगल जन्म लहें
बाहरी कड़ियाँ
- www.sridasamgranth.com
- History and scripture of the Dasam Granth
- Recording by Atam Ras Kirtan
- Nation following Guru’s maxim on border: PM
- There are a number of symbolic references to Hindu myths...viz. deh siva bar mohe ehai. Manasvi (1999). Sikh History and Culture: Reflections in Indian Fiction. Harman Pub. House. पृ॰ 7. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8185151628.
- http://www.srigranth.org/servlet/gurbani.gurbani?Action=KeertanPage&K=553&L=9&id=24468
- "Siva, Shiv".